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अच्छ॑ ऋषे॒ मारु॑तं ग॒णं दा॒ना मि॒त्रं न यो॒षणा॑। दि॒वो वा॑ धृष्णव॒ ओज॑सा स्तु॒ता धी॒भिरि॑षण्यत ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

accha ṛṣe mārutaṁ gaṇaṁ dānā mitraṁ na yoṣaṇā | divo vā dhṛṣṇava ojasā stutā dhībhir iṣaṇyata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अच्छ॑। ऋ॒षे॒। मारु॑तम्। ग॒णम्। दा॒ना। मि॒त्रम्। न। यो॒षणा॑। दि॒वः। वा॒। धृ॒ष्ण॒वः॒। ओज॑सा। स्तु॒ताः। धी॒भिः। इ॒ष॒ण्य॒त॒ ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋषे) विद्वन् ! आप (योषणा) स्त्री और (मित्रम्) मित्र के (न) सदृश (मारुतम्) मनुष्यसम्बन्धी (गणम्) समूह को (अच्छ) उत्तम प्रकार प्राप्त हूजिये (वा) वा जैसे (दिवः) कामना करते हुए (धृष्णवः) धृष्ट, प्रगल्भ, दृढ़ निश्चयवाले (स्तुताः) प्रशंसितजन (धीभिः) बुद्धियों और (ओजसा) बल आदि से (दाना) दानों को देकर मनुष्यसम्बन्धी समूह को (इषण्यत) प्राप्त होते हैं, वैसे सब प्राप्त हों ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। सम्पूर्ण अध्यापक और पढ़नेवाले मित्र के सदृश परस्पर वर्त्ताव करके वायु आदि पदार्थों की विद्या का अच्छे प्रकार ग्रहण करें ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे ऋषे ! त्वं योषणा मित्रं न मारुतं गणमच्छ प्राप्नुहि वा यथा दिवो धृष्णवः स्तुता धीभिरोजसा दाना मारुतं गणमिषण्यत तथा सर्वे प्राप्नुवन्तु ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अच्छ) (ऋषे) विद्वन् (मारुतम्) मरुतां मनुष्याणामिमम् (गणम्) समूहम् (दाना) दानानि (मित्रम्) सखायम् (न) इव (योषणा) स्त्री (दिवः) कामयमानाः (वा) (धृष्णवः) धृष्टाः प्रगल्भा दृढनिश्चयाः (ओजसा) बलादिना (स्तुताः) प्रशंसिताः (धीभिः) प्रज्ञाभिः (इषण्यत) प्राप्नुवन्ति ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। सर्वेऽध्यापका अध्येतारश्च मित्रवद्वर्त्तित्वा वाय्वादिपदार्थविद्यां सङ्गृह्णन्तु ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. सर्व शिक्षक व विद्यार्थी यांनी मित्राप्रमाणे परस्पर वर्तन करून वायू इत्यादी पदार्थांची विद्या चांगल्या प्रकारे शिकावी. ॥ १४ ॥